ख़व्वाब

उन खव्वाबो का क्या जो रातों में नहीं आते,
उस दर्द का क्या जो हम कभी बयां नहीं कर पाते,
जिंदगी में खव्वहिश़ दो मंजिली मकान की है,
जिसे हम कई बार घर बना ही नहीं पाते ।

भागते है जीतने के लिए, ठहरते है फिरसे भागने के लिए,
पर उस वक्त का क्या जिसे कभी मात हम दे ही नही पाते,
अंधेरा दुनिया में खूब है जानते है हम सब,
मगर मन में रोशनी का दिया जला नही पाते,
मानवता की बातें लिखी है खूब किताबो में सबने पढ़ी भी होगी शायद,
पर अखबार की खबरो में क्यूँ हम इंसान को ढूंढ नही पाते,
मदद को खड़ा दिखता हैं हर कोई हर कोने में,
मगर हम भरोसे की पुकार लगा नही पाते,
दुनिया को तो बदलना सभी चाहते हैं लेकिन,
परंपराओं जैसी बेढ़ियो के कारण लोग बदल नहीं पाते,
ये दुनिया खूबसूरत भी हैं और बुराईयाँ तो इसमें खूब हैं,
हम खूबसूरती पाना चाहते हैं, दुनिया को खूबसूरत बनाना नही चाहते ।



अपने विचारो को जलाकर राख कर रहा हूँ मैं गुजरते वक्त के साथ,

क्योंकि लोगो का कहना हैं कुछ खव्वाब हकीकत बन ही नहीं पाते ।



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