गीता

     

अब्बू अब्बू..मुझे एक गीता लाकर दो ना ।

क्यूँ बेटा?

अब्बू मेरा जो दोस्त है ना संदीप वो गीता पढ़ रहा
है और रोज मुझे अच्छी बातें बताता हैं । मुझे भी
पढ़नी हैं।

पर बेटा तुमने तो अभी कुऱान भी नही पढ़ी, और
गीता तो हमारे मजहब की किताब नही है।

पर...अब्बू , हमारे टिचर ने तो कहा था , कि हम
सिर्फ इंसान है और हमे सभी धर्मो का आदर
करना चाहिए।


अब्बू अनुत्तरित थे, शायद वक्त ने उनको इंसानियत की नज़रे छोड़ मजहबी चश्मे से देखना सिखा दिया था।

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